बनारस के समकालीन कला परिदृश्य में विजय सिंह एक प्रमुख नाम हैकाशी हिन्दू विश्वविद्यालय में व्यावहारिक कला के शिक्षक होने के बावजूद वे चित्रकला के एक प्रयोगधर्मी कलाकार हैं। उन्होंने प्रचुर चित्रों का निर्माण किया एवं कर रहे हैं तथा कई सुन्दर मूर्तिशिल्प उकेरे हैं। श्वेत श्याम रेखांकन-चित्रों के लिए उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त हुई। श्वेत श्याम छवियों में उन्होंने पैन एवं इंक की सहायता से विभिन्न प्राकृतिक दृश्य एवं अन्य संयोजन निर्मित किए है जो अपने त्रिआयामी प्रभाव और रूपाकारों की विशेषता के कारण ध्यान आकृष्ट करते हैं। प्राकृतिक रूपाकारों से भी उन्होंने विभिन्न आकल्पन (डिजाइन) निर्मित किए जिनके संयोजन विशेष रूप से प्रभावी रहे।
कैमरे की आंख से भी विजय सिंह ने बनारस के परिदृश्य को देखा। छायांकन में गहरी रूचि रखने वाले विजय सिंह बनारस के घाटों के चित्रण की ओर जब ध्यानोन्मुख हुए तो कैमरे से इतर विशिष्ट संयोजनात्मक दृष्टि के साथ उन्होंने चित्र श्रृंखला की रचना की। ये चित्र जल अथवा एक्रेलिक रंगों से कागज और कैनवास पर उकेरे गए, इन चित्रों में अंधेरे में प्रकाश के प्रभाव को चित्रित किया गया जो घाटों के स्थापत्य के अनुसार झरोखों से, कहीं दरवाजों से, कहीं सीढ़ियों पर आता हुआ दिखाई देता है। यूं तो बनारस के घाटों को एम.एफ. हुसैन, रामकुमार, मनुपारिख, इलापाल, दीप्ति प्रकाश मोहन्ती एवं अन्य न जाने कितने कलाकारों ने चित्रित किया किन्तु विजय सिंह के घाट उस रहस्यमयता को उद्घाटित करते है।जिसके लिए बनारस विशेष रूप से जाना जाता है।
चित्रों में केवल रात्रि के परिदृश्य का रूपांकन ही नहीं अपितु उसके साथ मानव की चेतना का सहकार भी अवलोकित किया जा सकता है। यदि ये कहा जाए कि आकार अपनी वाह्य परिधि तोड़ अपने आन्तरिक तत्व के साथ उपस्थित है तो आश्चर्य न होगा। निरन्तर सृजन के द्वारा विजय सिंह इन घाटों को चित्रित करते हुए अब उस मोड़ पर पहुंच चुके हैं जहां घाटों की आत्मा के साथ-साथ चित्र सृजन के सौंन्दर्यात्मक और सैद्धान्तिक का उच्च स्तर दृष्टिगत होता है, यथा आकार विस्तृत अन्तराल को घेर भी रहा है, और नहीं भी। घाटों के मानस पर पड़ते हुए प्रभाव की भी अभिव्यंजना अवलोकित की जा सकती है। विस्तृत अन्तराल में संयोजित किए गए ये आकार कलाकार के मन के रंगों से चित्रित है। इनमें वर्णनात्मकता विलुप्त है, किन्तु चन्द तूलिका संघातों से न केवल उनका आभास प्रस्तुत है अपितु प्राचीनता भी कुछ टेक्स्चर के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। अन्तराल व्यवस्था के प्रयोग दिन प्रति दिन बढ़ते गए हैं। आकार छोटे होते गए हैं किन्तु बनारस की मूल आत्मा धर्म के रहस्य को दर्शाती सी है। विजय सिंह ने रंग प्रक्षेपण के भी सुन्दर प्रयोग किए हैंकई दृश्य चित्रों में रंग तीव्र प्रभाव के साथ प्रस्तुत होते हैं।
घुमक्कड़ प्रवृत्ति के विजय सिंह ने विभिन्न तीव्र रंगों की पृष्ठभूमि में उनकी पूर्णता के साथ सरलीकृत रूप को उभारने का प्रयास किया है। इनके बनारस के घाट कहीं वाईब्रेन्ट हैं, कहीं सन्नाटे को पीते हुए हैं। किसी-किसी चित्र में उन्होनें विभिन्न रंगों के छोटे-छोटे पैचेज छिटका कर घाटों के मनोरम रूप और जीवन्तता का एहसास कराया है। विजय सिंह के कलाकार मन ने कहीं-कहीं गंगा की लहरें अमूर्त रूप में चित्रित की हैं। वर्तमान समय के इनके चित्र विशेष संयोजन की श्रेणी में रखे जा सकते है जो उत्कृष्ट हैं। इनके प्रमुख संयोजन बनारस थू माई आइज, वाईब्रेन्ट वाराणसी एवं अन्य संयोजन हैं। चित्रों में प्रयुक्त रंगों में प्रायः काली पृष्ठभूमि है जिसमें रूपाकार कभी ग्रे, कभी भूरे और कभी लाल रंग से उभरते हैं। इण्डियन यलो कलर एवं नारंगी के कुछ पैच बनारस के धार्मिक पक्ष एवं आध्यात्मिक चेतना को प्रस्तुत करते है। पेन एण्ड इंक ड्राइंग के शीर्षक प्रमुख रूप से लाइफ, स्टिल लाइफ, माई लविंग विलेज, माई विलेज, सहचर, ब्लैकवन इत्यादि हैं। बहुत कोमलता के साथ काले रंग में विभिन्न उतार चढ़ावों को उन्होंने दर्शाया है। विजय सिंह की रचनाओं में मुख्य रूप से अपनी जमीन और उसके परिवेश के प्रति गंभीर और गहन लगाव को देखा जा सकता है जिसे नोस्टेलजिया कहते हैं। विजय अपने चित्रों में शहरी जीवन की आपाधापी, तनाव और गांव की सरल लेकिन कठोर जिन्दगी के बीच के द्वन्द्व को बहुत सहजता से अभिव्यक्त करते हैं और उनके चित्रों की यही सरलता दर्शक से संवाद स्थापित करती है। विजय के चित्रों में व्याख्यान या वर्णन नहीं होते हैं बल्कि यहां बहुत सीधी और सपाट परिभाषाएं होती है जो सोचने को विवश करती हैं। चित्रों में रंगों के पैचेज बहुत बोल्ड हैं किन्तु अन्य रंगों एवं पोत की सहायता से घाटों की प्राचीनता दर्शाई जाती है।
1954 में मिर्जापुर में जन्मे विजय सिंह की शिक्षा दीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हुई तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। कई वर्षों से वे यहां अध्यापन कर रहे हैं। विजय सिंह ने महाकौशल कला परिषद रायपुर, उ.प्र. ललित कला अकादमी, आल इण्डिया विजयवाड़ा, आल इण्डिया हैदराबाद आर्ट सोसाइटी, आल इण्डिया फाइन आर्टस एण्ड क्राफ्ट सोसाइटी नई दिल्ली, आल इ आन्ध्र प्रदेश, इण्डियन एकेडमी आफ आर्ट अमृतसर, कैमलिन आल इण्डिया सहित न जाने कितने पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त किए। देश की महत्वपूर्ण कला दीर्घाओं में एकल व सामूहिक प्रदर्शनियां आयोजित हुई। कई अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भी सहभागिता रहीविजय सिंह व्यवहार कुशल व्यक्तित्व के धनी हैं जिनकी सृजन चेतना अपनी धुन की पक्की है जो नित नए चित्र रच रही है।